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अजितवीर्य बाहुबलि
१. ज्येष्ठ या श्रेष्ठ
बाहुबलि अथवा गोमटेश्वर का जीवन चरित्र किसी भी महाकाव्य का विषय हो सकता है । वाल्मीकि का रावण, व्यास का दुर्योधन और मिल्टन का शैतान - तीनो ही सुन्दर विभूतियाँ है और अपनी दुष्टता मे भी उदारता का प्रदर्शन करती हैं, परन्तु अन्त तक अपने रजोगुण को नही छोडती । बाहुबलि इनमे बिल्कुल भिन्न प्रकार के वीर पुरुष है । वे अपनी सामाजिक और मानसिक शक्तियो का रजोगुणी उत्कर्ष दिखलाते हैं और फिर इससे कही अधिक ऊचे उठ कर सतोगुण मे प्रवेश करते हैं । इस प्रकार वे आत्म कल्याण के साथ-साथ मानव समाज मे प्रतिष्ठा प्राप्त करते है ।
महाराज ऋषभदेव के सौ पुत्र थे । भाइयो मे आपस मे झगडा न हो और प्रजा का शोषण भी न हो इन बातो से बचने के लिए यह निश्चय किया गया कि ज्येष्ठ पुत्र को राजगद्दी दे दी जाय और शेष सब भाई गृहस्थ-धर्म को छोड़कर स्वर्ग प्राप्ति के लिए साधना करे ।
इस निश्चय के अनुसार 98 पुत्रो ने दीक्षा ले
।
ज्येष्ठ पुत्र भरत को इस व्यवस्था का
ली और सासारिक राजगद्दी मिल गई विरोधी था । उसने
महत्त्वाकांक्षा को छोड दिया लेकिन उसका सौतेला भाई बाहुबलि यह आपत्ति उठाई और कहा— जो ज्येष्ठ होने के साथ-साथ श्रेष्ठ भी हो उसे राजगद्दी मिलनी चाहिये - यह बात बिलकुल ठीक है, लेकिन यदि ज्येष्ठ श्रेष्ठ न हो तो आयु की अपेक्षा, योग्यता की ओर ही ध्यान देना चाहिये । क्योकि राज्य प्रजा के हित के लिये होता है, राजा के श्रामोद-प्रमोद के लिये नही । भरत भले ही ज्येष्ठ हो, लेकिन मै उनकी अपेक्षा सव प्रकार से श्रेष्ठ हूँ और राजगद्दी मुझे ही मिलनी चाहिए ।
जब यह विवाद खडा हुआ तो प्रत्येक को अपनी-अपनी योग्यता सिद्ध करने के लिए कहा गया । राजा मे दृढता का होना परमावश्यक है । इसके लिए दोनो की परीक्षा की गई । इस परीक्षा मे बाहुबलि श्रेष्ठ प्रतीत हुये । राजा मे अपने वाक्चातुर्य से जनता को मुग्ध करने की शक्ति होनी चाहिये