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महावीर का जीवन सदेश है, वही मनुष्यो मे सर्वज्ञ है। वाकयी सम्पूर्ण सत्य को जो कोई जानता होगा उस परमात्मा को हम अव तक पहचान नही सके है।
ज्ञान की इस मर्यादा मे ही अहिसा का उद्भव है। जब तक मैं सर्वज्ञ न बनू , दूसरे पर अधिकार जमाने का मुझे क्या हक है ? मेरा सत्य मेरे लिए है । उसका अमल मुझे अपने जीवन मे अवश्य करना चाहिये । दूसरे को उसका साक्षात्कार न हो तव तक मुझे धीरज से पेश आना है। इस तरह की वृत्ति को ही अहिंसावृत्ति कहते है।
स्वाभाविक रूप से ही मनुष्य के जीवन मे सर्वत्र दुख फैला हुआ है। जन्म-जरा-व्याधि से मनुष्य हैरान हो जाता है । इष्ट का वियोग और अनिष्ट का सयोग भी जीवन मे है ही। किन्तु स्वय मनुष्य ने क्या कम दु ख खडे किये है ? मनुष्य यदि सतोप और नम्रता धारण करे तो मनुष्य जाति का नब्बे फी-सदी दुख कम हो जायगा। आज जो अलग-अलग देशो के वीच और अलग-अलग कौमो के बीच कलह चल रहे है और मृत्यु के पहले ही इम सृष्टि पर जो नर्क हम खडा करते है उसे तो हम सिर्फ अहिंसावृत्ति से ही रोक सकते है।
हिन्दुस्तान के इतिहास का यदि कोई विशेष सार-बोध हो तो वह यही है कि हमने निम्न सार्वत्रिक प्रार्थना ढूंढ निकाली और चलायी
सर्वेऽत्र सुखिन सन्तु, सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुखभाग भवेत् ॥
इस वृत्ति मे पूरा जीवन साफल्य है। हिन्दुस्तान मे जो भी आये, सब यही रह गये। कोई वापस नही गये। जो आश्रित होकर आये वे भी रह गये और जो विजेता के उन्माद के साथ आये वे भी रह गये । सभी भाई-भाई वनकर रह गये और पायदा भी रहेगे। विशाल हिन्दू धर्म कीजनक के हिन्दू धर्म की, व्यास वाल्मीकि के हिन्दू धर्म की, गौतम बुद्ध के हिन्दू धर्म की, महावीर के हिन्दू धर्म की इस पूण्य भूमि मे सवके लिए स्थान है । क्योकि इसी भूमि मे अहिंसा का उदय हुप्रा है । सारी दुनिया शान्ति की खोज कर रही है। त्रस्त दुनिया त्राहि-त्राहिं पुकार रही है। फिर भी उसे शान्ति का रास्ता मिल नहीं रहा है । जो लोग दुनिया को लूट रहे है, महायुद्ध छेड रहे है वे भी आखिर मे शान्ति ही चाहते है। किन्तु शान्ति कैसे प्राप्त हो?