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महामानव का साक्षात्कार
पर्युषण पर्व व्यारयान - माला के साथ मेरा सम्वन्ध माला के प्रारम्भ से हो रहा है । अहमदाबाद, बम्बई, कलकत्ता, उन्दीर, श्राकोला प्रादि में मैने पर्युषण पर्व के अवसर पर व्याख्यान दिये है । और बम्बई की व्याज्यान माना मैं ग्राम तौर पर हर साल हाजिर रहा ही हूँ । उगमे अगर विन्न श्राया है तो स्वराज - प्रान्दोलन के फलस्वरूप जेल -याना में ही ।
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पर्युपण-पर्व व्याख्यान माला गुरु हुई और जब वक्त एक सनातनी जैन माई ने कुटकर मुझे लिखा था जिस तरह की रूढि हमारे जात- भाइयो मे चली आई है उसे तोड़ने का काम श्री परमानन्द भाई जैसे लोग करते हैं । ग्राप जैनेनर है । श्रत ग्राम जैगी को उसमे क्यो हिस्सा लेना चाहिये ? इस व्याख्यान-माना मे बडे-बडे लोग नाकर व्याख्यान देते है । फिर ढिगत कार्यक्रम का भाव कौन पूदे 2 ग्रामको चाहिये कि आप इस पर्यु पण व्याख्यान माला मे हिम्मा न ले ।"
लोकप्रिय हुई, उस "पयुषण पर्व मे
उस माई के शब्द बहुत ही मौम्य मापा मे मैंने यहाँ दिये है । उम व्यारयान - माला को यह एक उत्तम सर्टिफिकेट मिला है, ऐसा उस वक्त मैंने माना था। लेकिन साथ-साथ यह विचार भी किया था कि उम भाई को रूढिचुस्त श्रात्मा की भावना को समालने के लिये उम व्यान्यान-माला के साथ का अपना सम्बन्ध में क्यो न तोड दूँ ? फिर मुझे खयाल थाया कि उस माला मे व्याख्यान करने के लिये जिन भाइयो को बुलाया जाता है, वह जैन हो या जैनेतर, उन सब मे जैन धर्म के मुख्य सिद्वानो के प्रति सच्चा हार्दिक श्रादर रहता है । जैन धर्म के स्याद्वाद और सप्तभगी न्याय का प्रत्यक्ष श्रोर जीवन्त उदाहरण इस व्याख्यान - माला मिलता है । सर्व धर्म समन्नय, धारिकता के प्रति उच्च भावना, धर्म के आधार पर ममाज-सुधार का चिन्तन और सामाजिक सम्बन्धो मे विशाल हृदय की श्रात्मीयता को भावना, इस माला के यह सब गुण देखकर मुझे लगा कि रुढिवादी एनराजो के वश होना श्रावश्यक नही हे । यथासमय रूढिवादी जैन भी इस प्रवृति को अपना लेंगे ।