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________________ क्षमापन का दिन [ १ ] लोग कहते है कि अति प्रभाव रूप ही है। मैं मानता हूँ कि गुण है । अगर ग्रहिमा के लिये नाव रूप कोई का उपयोग होता है। मैत्री मे दुरपयोग स्नेह में प्रात्मीयता दोषों को छोटे कर प्रेम या मैत्री | प्रेम का वह डर नहीं है । प्रसन में ग्रहिमा, मैगी घोर प्रेम या का भाव माना है | हम प्रपना भला पाहते रे, देखते हैं, अपनी भूलो यो क्षमा करते है और सुधर जाये के माप पर तुरन्न विश्वान करते है। जहां-जहां हमारे मन मे प्रारमीयता होती है, वहांवहाँ हमारी ये नव वृत्तियां न्वानाविता ने प्रकट होती है । प्रभाव रूप मोक्ष भी यह दोष नहीं है हन्तु या गया हो ता वह है अपने पराये का भेद भूलकर दूसरी भी ना चाहना, दूसरो के भले के लिये आराम के निये, स्वय फष्ट उठाना और दूगरी दोषों के प्रति क्षमावृत्ति रखना, यही है, वही है मैत्री भावना | जागंणीभावना है वहाँ वदला लेने की इच्छा नहीं होती । जब प्रमृनगर गजाव मे जनरल डायर ने हमारे लोगो की गल को और उनसे तरह-तरह ने पीठिन और अपमानित किया, तब गांधीजी ने सरकार से न्याय की मांग की। किन्तु माथ यह भी कहा कि हम जनरन शयर को गजा नहीं कराना चाहते । गांधीजी ने यह जो नया रप धारण किया उनमें कोई श्रानयं नही था, किन्तु मारे राष्ट्र ने कुछ मोचने के बाद उनकी हम बदला न लेने की नीति को तुरन्त मान निया | इस पर मे सिद्ध होना है कि हमारे देश को सस्कृति मे ग्रहमा हराई तक पहुँची हुई है। गांधीजी जैसे समर्थ कर्मयोगी ही लोगो के हृदय में पैठकर उनकी सोयी हुई ग्रहमा को जाग्रत कर सकते है । ग्राज का दिन क्षमा करने का श्रीर क्षमा मांगने का है । जिन महावीरी ने इस व्रत को, उस रिवाज की ग्रोर ऐसे दिनों की स्थापना की, उनके हृदय में सच्ची और जीवित श्रहिमा थी । वे शान्ति के साथ कायोत्सर्ग भी कर सकते थे । हम लोग मुँह मे ग्रहिमा का समर्थन भी करते है, और अन्याय करने वालो को सजा भी दिलाना चाहते है । इतना ही नही, किन्तु कई दफे पाप का बदला घोरतर पाप कर के ही लेना चाहते है ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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