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हावीर का अन्तस्तल
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है ? जब उनके भेजने में यशोदा देवी और माताजी का हाथ था तब आने का उद्देश. साफ ही था, पर जब उनने मेरे संन्यास की बात उठाई. तब रहा सहा सन्देह भी दूर होगया। फिर भी मैने अपना मनाभाव दवाते हुए कहा-कमयोग की साधना के लिये जिस संन्यास की जरूरत पड़ती है उसी संन्यास की तैयारी में कर रहा हूँ। जीवन की थकावट के बाद पैदा होनेवाले संन्यास की अथवा संसार में शान्तिपूर्वक रहने की असमर्थता से पैदा होनेवाले संन्यास की नहीं।
शर्मा-क्या आप मानते हैं कि संन्यास भी कर्मयोग की भृमिका बन सकता है ? : मैं-कर्मयोग ही नहीं हर एक कर्म की भूमिका संन्यास बन सकता है और प्रायः बनता है।
शर्मा-इस बात को कुछ उदाहरण देकर स्पष्ट कीजियेगा?
मैं-गृहस्थाश्रम तो कर्म का मुख्य क्षत्र है पर उसकी ___ योग्यता प्राप्त करने के लिये ब्रह्मचर्याश्रम बनाया गया है जिसमें
संन्यासी सरीखी साधना करना पड़ती है । संन्यास में यही तो जरूरी है कि मनुष्य ब्रह्मचारी रहे. इन्द्रियों के भोगों की पर्वाह न फरे. अपनी साधना को छोड़कर अन्य किसी से मोहन रक्खे जो कुछ विपदा आय उसे सह जाय । संन्यास के ये गुण मनुष्य को हर एक कर्मसाधना म प्राप्त करना पड़ते हैं। जीवन में उतारना पड़ते हैं, एक सेनिक को भी युद्ध में इन गुणों का परिचय देना
पड़ता है | सुनते हैं कि विद्याधर लोग विद्यासिद्धि के लिये , कठोर तपस्याएँ करते हैं। रावण वगैरह ने भी अपनी दिग्विजय . के पहिले सन्यासियों का भी मात करनेवाली तपस्या की थी।
विष्णुशर्मा जरा उल्लास में आकर वोले-ठीक ! ठीक !! समझगया । आप विश्वविजय की तैयारी करना चाहते हैं ।