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जो शीघ्रता थी जो सम्भ्रम था वह पहिले न होता था। समझ गया कि यशोदादेवी के जरिये मेरे मानस - समाचार यहां पहुँच गये हैं 1
महावीर का अन्तस्तल
माताजी ने मेरी ठुड्डी को हाथ लगाकर कहा- बेटा ! सुनती है आज कल तुम बहुत उदास रहते हो, अगर किसी से कुछ अपराध होगया हो तो तुम. इच्छानुसार दण्ड दे सकते हो पर इस तरह उदास बनने की क्या आवश्यकता ?
मैंने कहा - अपराध करने पर जिन लोगों को में दण्ड देसकता हूँ उनमें से किसी ने कोई अपराध नहीं किया है, बल्कि उनके सामने तो में स्वयं अपराधी हूं क्यों कि उन्हें चिन्तित और दुःखी कर रहा हूं । पर जो वास्तव में अपराधी हैं, उन्हें दण्ड देने की शक्ति न मुझमें है न तुम में, न भाई नन्दिवर्धन में है न पिताजी में ।
माताजी मेरी बात सुनते ही. पहिले तो आश्चर्यचकित होगई, फिर मुखमण्डल पर रोप छांगया। फिर जरा जोश के साथ बोली- वर्द्धमान ! बताओ तो वह कौन हुए हैं जो मेरे बेटेका अपराध करके अभी तक जीवित है, जरा उसका नाम ठिकाना तो सुनू ।
मैं- मैं समझता हूं माताजी, उसका नाम ठिकानां यशोदा देवी ने तुम्हें बता दिया होगा ।
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से
माताजी - क्या शिवकेशी को घायल करनेवाले ब्राह्मणों तुम्हारा मतलब है !
मैं- न केवल उन ब्राह्मणों से ! किन्तु हजारों शिवकेशियों को घायल करने वाले लाखों ब्राह्मणों से ! लाखों मूक पशुओं के 'खूनका कीचड़ बनानेवाले हजारों राजन्यों और ऋपिम्मन्यों से !!