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महावीर का अन्तस्तल
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१५-शान्त सभ्य बनकर शिष्टाचार का पालन करो।
१६-पुरुषार्थ को महत्ता दो। देव अपना काम करता __ रहे तुम झुसकी चिन्ता न करो। .
१७-संसार का स्वभाव अन्नतिशील मानो. अवनति को वीमारी समझो और उन्नति की भाशामें सदा काम करत रहो।
१८-सेवाभावी सदाचारी और योग्य व्याक्तियों के हाथमें शासन कार्य सोपो।
१९-न्यायले निर्णय होने दो, पशुवल या युद्ध से नहीं। युद्धों को गैरकानूनी ठहराओ ।
२०.नीति का विरोध न करके भौतिक सुखसाधनों की वृद्धि करो।
२१--मनुष्य मात्र की एक भाषा और एक लिपि बनाओ। २२ मनुष्य मात्र का एक राष्ट्र वनाओ। २३-सारे संसार में कौटुम्बिकता लाने की कोशिश करो। २४-कर्मयोगी बनो।
ये चौबीस जीवन सूत्र लत्यसमाज के प्राण है । अधिः कांश जैनधर्म से मेल खाते हैं, कुछ युग के अनुसार जोड़े गये हैं परन्तु मानव मात्र के लिये जरूरी है । जैन लोग इन्हें जैनधर्म का परिवर्तित और परिवर्धित संस्करण समझकर इन्हें थपनायें । अन्तस्तल पढ़कर सत्यामृत सत्येश्वरगीता जविनसूत्र, सत्यलोकयात्रा आदि ग्रन्थ पढ़े। सम्प्रदायों में छिन्न भिन्न हुए जैनधर्म को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने के लिये जैनधर्म मीमांसा पढ़ें। यह सब साहित्य पढ़ने से तथा विवेक. पूर्वक विचार करने से उन्हें सत्यसमाजी बनना जरी मालूम