________________
[ ३३९
का खुलासा मांगा, और प्रमाणित करने का आग्रह किया । संवेदन तुम्हें होता है
महावीर का अन्तस्तल
मैंने कहा - सुख दुःख का
कालोदायी ?
कालोदायी -- जी हां !
मैं- यही जीवास्तिकाय का संवेदन है। अब इसको सिद्ध करने के लिये तो प्रमाण की जरूरत न रही ।
कालोदायी - ठीक है ।
मैं- रूप रस गन्ध स्पर्श वाला भौतिक जगत् तुम देखते ही हो जो जड़ है । यही पुद्गलास्तिकाय है । यह प्रत्यक्ष सिद्ध है इसे भी सिद्ध करने की जरूरत नहीं है ।
कालोदायी- यह भी ठीक है ।
मैं- जितने पदार्थ गतिमान होते हैं उनको कोई न कोई निमित्त जरूर होता है। जैसे पार्थक को पंथ । इसीप्रकार सारे गतिमान पदार्थों की गति में जो सामान्य निमित्त है वही धर्मास्तिकाय है । वह लोक व्यापक है । वह किसी भी इन्द्रिय का विषय नहीं है, अमूर्त्तिक है ।
कालोदायी- यह भी ठीक है ।
मैं- जो पदार्थ गतिमान है सुनको जब तक कोई रोकनेवाला न मिले वे नहीं रुकते । चाहे पृथ्वी से रुके, या जलसे, या वायुसे, किसी न किसी से वे रुकेंगे । तत्र जो सब गतिमान पदार्थों को रोकने में निमित्त कारण है वही अधर्मास्तिकाय है ।
कालोदायी- यह भी ठीक है ।
मैं- हर एक पदार्थ अपनी स्थिति के लिये कोई न कोई