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________________ महावीर का अन्तस्तल [ ३२१ इस के बाद भी वह बकझक करता ही रहा और बोलाकाश्यप, देखा मेरा प्रभाव, तेरे चेलों को देखते देखते मिट्टी में , मिला दिया अब भी तू मुझे अपना शिष्य कहेगा । मैं जो वस्तुस्थिति है वह तो कहना ही पड़ेगी। यह सुनकर उसने उसी तरह मंत्र पढ़कर मेरे ऊपर भी ज्याला छोड़ने का नाट्य किया । पर मैं न घबराया न हिला, बालक मुसकराया । और इसके बाद हलका सा प्रतिनाट्य करते हुए कहा-देख गोशाल, तेरी दिव्य ज्वाला मेरे पास आई परन्तु वह लौटकर तरे ही ऊपर आघात करने चली गई है । देख तेरे शरीर में धीरे धीरे जलन बढ़ने लगी है। मेरी दृढ़ता से तथा शब्दों से गाशाल घयगया । फिर भी बोला-काश्यप, तू मेरी दिव्य ज्वाला से बीमार होकर छः __ महीने में मर जायगा । मैं-मैं जब मरूंगा तब मरूंगा; पर गोशाल, तृ सात दिन में ही मर जायगा । क्योंकि जो भयंकर ज्वाला तूने मेरे ऊपर छोड़ी थी वह लौटकर तेरे ही भीतर घुसगई है। मेरी बात से गोशाल शंकाकुल हुआ, व्याकुल हुआ, वह कांपने लगा। तब मैंने अपने सव शिष्यों से कहा-थए तुम लोग गोशाल के साथ तर्क वितर्क कर सकते हो. मुसका मुंह बन्द कर सकते हो, इसकी शक्ति क्षीण होगई है। शिप्यों ने जब उसके साथ तर्क वितर्क किया तब वह घबराकर चलागया। पर उसपर मेरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव इतना पड़ चुका था कि वह अन्त. र्दाह का अनुभव करने लगा। ६चन्नी ९४५७ इ. सं. - कल गोशाल के साथ जो झगड़ा हुआ उसकी चर्चा
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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