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महावीर का अन्तस्तल
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कल्पना न
छोड
! उसने मोबद सकता
से अशान्त हो गया है । वह छः वर्ष मेरे साथ रह चुका है। प्रारम्भ में झुसे मेरे विषय में बड़ी भक्ति थी पर जब उसने देखा कि मैं उसके ऐहिक स्वार्थ के लिये उपयोगी नहीं हूं तर उसने साथ छोड़ दिया । उस समय असे कल्पना नहीं थी कि किसी दिन मेग प्रभाव बढ़ सकता है, मेरा सत्यसन्देश फैल सकता है । उसने मुझे एक तरह से साधारण मनुष्य समझकर छोड़ दिया था । पर आज साधारण को असाधारण रूप में देखना पड़ रहा है, और अपनी. उस भूलको वह सममाना नहीं चाहता है। ... . . यह रोग प्रायः सभी परिचितों में होता है । विकास के पहिले अधिक परिचितों का होना भी एक दुर्भाग्य है । क्योंकि उस समय के जितने अधिक परिचित होंगे ईर्ष्यालुओं की संख्या भी उतनी अधिक होगी । इसलिये अविकास के बारह वर्षों में मैंने किसी से परिचय बढ़ाने का प्रयत्न नहीं किया, पर यह गोशाल प्रारम्भ से ही परिचय में आगया इसलिये यह सब से बड़ा ईर्ष्यालु बन बैठा है ।
___ यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है । मनुष्य पहिले पहल किसी दूसरे मनुष्य से जिस रूप में परिचित होता है प्रायः असी रूप में उसे वह जीवनभर देखना चाहता है । अगर कोई दसरा मनुष्य एक दिन अपने बराबर का या नाममात्र के अन्तर का हो, और पीछे वह अधिक विकसित होजाय, अपनी योग्यता तथा व्यक्तित्व से उसकी योग्यता और व्यक्तित्व इतना अधिक बढ़जाय जितने की उसे भाशा नहीं थी तो इस बात में उसे अपमान का अनुभव होता है और इस कारण वह दूसरे मनुष्य की महत्ता अस्वीकार करता है और साथ ही वह अस्वी. कारता उचित समझी जाय इसलिये वह दूसरे के व्यक्तित्व को गिराने की पूरी चेष्टा करता है, निन्दा करता है, इच्छापूर्वक