________________
+
î
[ २३
की वास्तविकता क्या है ? अलौकिक ज्ञान कहलाने वाली नि क्षण शक्ति कभी कभी कैसे चूक जाती है और फिर किसप्रकार चतुराई से काम लेना पड़ता है । शास्त्रों में भी यह घटना इतनी साफ है कि इसके ऊपर की लीपापोती भी इसे ढक नहीं पारही है । साम्प्रदायिक लोग इससे महावीर स्वामी की महत्ता की क्षति समझेंगे पर मैं ऐसा नहीं समझता। अलौकिक मानों की जब कोई सत्ता नहीं है तब लोकहित की दृष्टि से न. महावीर स्वामी को इसप्रकार अवश्य सत्य बोलना पड़े इससे उनकी महामानवता क्षीण नहीं होती । आज के वैज्ञानिक युग में तो ऐसी घटनाओं का मर्म स्वीकार करने में ही कल्याण है ।
४३-८२ वां प्रकरण कल्पित है । इसमें एक सानी हाम अनेकान्त का व्यावहारिक रूप बताया गया है। कहानी भले ही कल्पित हो परन्तु उससे अनेकान्त सिद्धान्त जो समझ में जाना है वह वास्तविक है । और इससे म. महावीर द्वारा की गई दा निक क्रान्ति की उपयोगिता और महत्ता समय में जाती है। प्रकरण तक का विषय शास्त्राधार से है । ८८ वें प्रकरण में जमालि की जुदाई की बात भी शास्त्राधार से है परन्तु विविध संवादों से और महत्वपूर्ण बनादिया गया है । संवाद का भार शाय होनेपर भी उसका विस्तार मालिक बनगया है।
२४ - ८३ वें प्रकरण से ८७
४५-६ वें प्रकरण में गोशाल के को घटना शास्त्राधार से है । यहां तक कि बहुतों की शास्त्रोक्त है। सिर्फ तेजोलेश्या को अांशिक वनस्कार न मानकर एक मनोवैज्ञानिक तथ्य के रूप में चित्रित किया गया हे .
४६- ९०-९१ वे प्रकरण भी शास्त्राधार से हैं पर मि दर्शना के मुँह से जो उद्वार निकलवाये गये है और विषय में