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महावीर का अन्तस्तल
और उसका पति मर गया। बड़ी गरीबीले उसने पुत्रका पालन किया। ज्यों ही वह दस वर्ष का हुआ कि गांववालों के ढोर चराने जाने लगा। इस तरह गरीबी से उसकी गुजर होने लगी। ... . . ..... एक बार त्यौहार के दिन सब के घर में खीर बनी । यह बालक भी मां से खीर खाने का हठ करने लगा। गरीबी के कारण मां के पास इतना धन नहीं था कि वह अपने पुत्र को खीर खिलासके इससे दुखके मारे वह रोने लगी। जब पड़ा. सिनों को उसके रोने का कारण मालूम हुआ तब सब ने थोड़ा
थोड़ा दूध दिया। तब उसने खीर बनाई। कई घरों से दूध . .मिलने के कारण बहुत दूध होगया इसलिये बहुतसी . खीर बनी।
उसने लड़के के थालमें बहुतसी खीर परोसदी और वह दूसरे काम में लगगई । इतने में एक साधु भिक्षा मांगता हुआ वहां आया । साधुको भूखा और दुर्वल देखकर बालक को दया आगई और उसने थाली की सारी खीर साधुको आर्पित कर दी।
पर और भी खीर बहुन थी, और उसने खूब खाई। इतनी अधिक कि असे वह पचा न सका । अजीर्ण से बीमार हुया और मर गया। । पर साधुको दिये हुए दान के प्रभाव से वही बालक भद्रा सेठानी के यहां शालिभद्र नामका पुत्र हुआ। उस शालिभन्द्र को उसकी इस जन्म की मां ने साधुवेप में न पहिचाना, पर पहिले जन्म की ग्वालिन मां ने पहिचाना। .... .
इसलिये आज जो तुम्हें भिक्षा मिली है वह मां के हाथों ही मिली है। निःसन्देह वह इस जन्म की मां नहीं है। पूर्वजन्म.' की मां है।"