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धर्म के अनुसार आध्यात्मिकता के विकास का यह श्रेणीबद्ध कार्यक्रम है।
३३-६७ चे प्रकरण में केवलझान का विवेचन नये ढंग से है । विश्वसनीय और वैज्ञानिक होने के साथ रहन्यांडाटक भी है।
३४-६८ व प्रकरण में लोकसंग्रह के बारे में म. महावीर के विचार आगे के कार्यक्रम के अनुरूप है।
३५- ६९ वें प्रकरण में ग्यारह गणधर शिप्यों का विवेचन शास्त्रोक्त हैं । गणधरों के प्रश्न भी शास्त्रोक्त हैं। परन्तु दो यानों में कुछ नवीनता आगई है। प्रश्नों को ऐसे ढंग से किया गया ह कि सारे प्रश्न एक कड़ी में जुडगये है । साथ ही उनके उत्तर अधिक जोरदार बनगये ६ जनशास्त्रों में फल प्रक्षों के उत्तर बहुत ही बालोचित या हास्यास्पद तरीके से दिये गये . जब कि अन्तस्तर में काफी नर्कपूर्ण बनगये है।।
३६-७०. ७१ वे प्रकरण शास्त्राधार से।
३७-मेघकुमार ( ७२ वां प्रकरण ) की घटना शास्त्रा. चार से है । पर जैनशास्त्रों में इसका विवेचन अविश्वसनीय सर्वज्ञता के आधार पर है जब कि अन्तस्तल का विवेचन मनो विज्ञान और चतुरता के आधार पर है । फुछ भोले जनभाई इस प्रकरण का मर्म न समझ सकेगे। वे सत्य तय का अन्तर ध्यान में लेंगे तो इस घटना का मर्म उनके ध्यान में भाजायगा ।
३८-७३ वे प्रकरण में नन्दीषण की घटना सामोना है। पर काम विज्ञान की शुद्ध चर्चा से उसमें वर्णन की नवीनता यागई है।
३६-४ वे प्रकरण में म. महावीर के अपनी जन्मभाग पधारने का वर्णन है। घटना शान्यात है। पर यहां जैन शान्त