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________________ २७२] महावीर का अन्तस्तल नन्दीपण श्रेणिक राजा का एक पुत्र है । मुझे मालूम हुआ है कि वह अत्यन्त विलासी है। उसका भोगकोदय इतना तीव्र है कि उसका शरीर ही ऐसा बन गया है । पर इन दिनों मेरे प्रवचन सुनते सुनते उसपर वैराग्य की छाया पड़गई । और वह किसी तरह अपने पिता से अनुमति लेकर मेरे पास दीक्षा लेने को आया । मैंने उसे रोका और अभी दीक्षा न लेने को कहा, पर उसने तो मेरे पास ही अपने कपड़े फेंक दिये और श्रमण वेष लेलिया । इसके बाद इन्द्रभूति गौतम ने एकान्त में मुझसे पूछाभगवन् आप सदा श्रमण धर्म का उपदेश देते ह, श्रमण बनने के लिये प्रेरित करते हैं पर आज आपने नन्दीपेण को प्ररज्या लेने से रोका, इसका कारण क्या है प्रभु! । मैंने कहा-गौतम, तीन तरह के कामी होते हैं। मन्दकामी, मध्यमकामी, तीरकामी । मन्दकामी मनुप्यों में मैथुन की इच्छा इतनी कम होती है कि तीर निमित्त मिलने पर ही उनकी कामवासना जगती है ऐसे लोग सहज ही श्रमण धर्म का बोझ उठा सकते हैं। ये अगर कोई तपस्या न करें, सिर्फ स्त्रियों के विशेष सम्पर्क से बचते रहे तो इतने से ही उनकी कामवासना शान्त रहेगी । ऐसे लोगों को श्रमण बनाने में कोई बाधा नहीं। मध्यमकामी मनुष्य पर्याप्त तपस्या करने पर और नारियों के सम्पर्क से बचने पर काम को वश में रख सकता है। सौ में पंचानवें मनुष्य इसी श्रेणी के होते हैं । ये भी श्रमण वनाये जासकते हैं पर इन्हें तपस्या आदि में तत्पर रहना चाहिये । तीरकामी मनुष्य अपनी कामवालना को तब तक चशमें नहीं रख सकता जब तक वह जवानीभर पर्याप्त भोग न
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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