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महावीर का अन्तस्तल
मैंने कहा- क्यों मेघ, इस जन्म में मनुष्य होकर सत्यश्रवण करके, उसपर श्रद्धा करके भी संयम का बोझ तुमसे नहीं उता ! एक ही रात में तुम घबरा गये ! पर तुम्हें मालूम नहीं है कि तुम किस सहिष्णुता के बलपर राजकुमार हुए हो । मेघकुमार अत्सुकता से मेरी तरफ देखने लगा ।
मैंने कहा- पहिले जन्म में तुम एक हाथी थे। एक वार दावानल लगा तो तुम एक नदी के किनारे मैदान की तरफ भागे, पर तुम्हारे जाने के पहिले चतचर पशुओं से मैदान भर चुका था। बड़ी कठिनाई से तुम्हें खड़े होने को जगह मिली। जब तुम खड़े हुए तो छोटे छोटे पशु तुम्हारे पेट के नीचे खड़े हो गये । पर घमसान बहुत था, जानवर खूब सिकुड़कर बैठे थे। हिलना बुलना तक मुश्किल था । इतने में तुम्हें खुजली उठी और तुमने एक पैर ऊपर झुठाकर खुजाया । पर उस पैर की जगह को खाली देखकर एक शशा उस जगह आ बैठा । तुम चाहते तो पैर रखकर उसे कुचल सकते थे पर दयावश तुमने ऐसा नहीं किया और तुम तीन पैर से ही खड़े रहगये ।
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वन में आग ढाई दिन रही इसके बाद सब पशु गये और तुमने भी पानी पीने के लिये नदी की ओर बढ़ना चाहा, पर तुम्हारा पैर ढाई दिन तक उठा रहने से अकड़गया था इससे ज्यों ही तुमने चलने की कोशिश की, कि तुम गिर पड़े। भूख प्यास से निर्बल तो तुम हो ही चुके थे, गिरते ही और असमर्थ होगये, पर जीवदया के भाव के साथ तुमने प्राण छोड़े, इसलिये तुम श्रेणिक राजा के पुत्र हुए। तुम प्यासे मरे थे और मेघों की तरफ तुम्हारा ध्यान था इसलिये तुम्हारी मा को मेघों के नीचे अर्थात् वर्षा में घूमने का दोहद हुआ था, इसीलिये जब तुम पैदा हुए तब तुम्हारा नाम मेघकुमार रेकखा गया । एक जीव पर दया के कारण हाथी से तुम राजकुमार होगये । एक