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असम्भव है. यद्द साग वर्णन अन्यन्त अविश्वसनीय है । फिर भी इस वर्णन का कुछ आचार तो होना चाहिये इसलिये ५६ प्रकरण में स्वप्न जगत के रूप में इस घटना को आधार दिया है। इस परिवर्तन से जैन शास्त्रों का वर्णन बिलकुल ठीक होगया। साथ ही इस प्रकरण में मनःपर्यय ज्ञान ही वास्तविकता पर अच्छा प्रकाश डाला गया है । इस अवसर पर म. महावीर को मनःपर्यय ज्ञान हुया था ऐसा वर्णन शास्त्रों में है। पर घमान क्या है ? वह संयमी को ही क्यों होता है ? इसका बुल्लाला इस प्रकरण में होगया है।
२६-५७ वें प्रकरण में डांकुओं द्वारा म. महावीर के मताये जाने की घटना शास्त्रोक्त है। यहां तक कि डांकुना ने म. महावीर को मामा. मामा कह कर भद्दा मजाक किया, कंध पर चढ़ गये, यह भी शास्त्रोक्त है। इससे मालूम होता : कि जगत के महामानवों को कभी कभी कैसे फेस शुद जीवा न किस बुरी तरह से अपमानित होना पड़ता है । यादग पृल्या पूज्यता से महामानवता का निर्णय करना व्यर्थ
२७-५८ से ६० वें प्रकरण तक तत्वों का विवचन । विवेचन जैन शास्त्रों के अनुसार ही ६ फिर भा पुण्यपाप शुभ शुद्ध आदि का जो विवेचन हुभा हैं और जीर्ण श्रेष्ट्री की शास्त्रोक्त कथा का जो स्पष्टीकरण किया गया ६ उलस पर नयासा प्रकाश डाला गया है । जैन मान्यता का पु: छिपाया सा मर्म प्रगट हुआ है।
२८- हिन्दू शास्त्रों में देवेन्द्र और अनुरेन्द्र के. गुलाका वर्णन आता है । जैनधर्म के अनुसार देव गति का जला करा: उसमें वैसा युद्ध सम्भव नहीं, फिर भी सुरासुर विरोध को दान इस देश में अतिप्राचीन काल से पतनी सद कि इस दिग्य में जैनधर्म का मौन खटकने वाला होता जैनाचार्यों ने महावीर