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२५२ ] ......... महावीर का अन्तस्तल
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तरीके को भी अपनाना पड़ेगा।
- वेदों की तरह अपने प्रवचनों का संग्रह कराना । मैं न रहं किन्तु मेरे प्रवचन व्यवस्थित रूप में रहे तो जगत् शताब्दियों तक उससे प्रेरणा पाता रहेगा । इसलिये प्रवचनपाठी भी तयार करना है। पर लबसे पहिला काम शिष्यों को ढूंढ़ना है ।
६९ - मुख्य शिष्य - १८ टुंगी ९४८४ इतिहास संवत्
इन दिनों धर्मतीर्थ की सबसे बड़ी आवश्यकता पूर्ण होगई। मुझे ग्यारह विद्वान शिप्य मिलगर ! और आश्चर्य यह कि सब के लव ब्राह्मण हैं ब्राह्मणों के विरुद्ध क्रांति करने में ब्राह्मणां का सहयोग शुभतम शकुन है । इन लोगों को संकड़ों वर्षों से अपनी जीभ पर बेदों को सुगक्षत रखने का अभ्यास है. अत्र अस शाक्ते का उपयोग व मेरे प्रवचनों को सुरक्षित रखने में करेंगे । आजकल ब्राह्मणों का झुकाय नवीन सर्जन या क्रांति की तरफ तो नहीं जाता पर सृजित को सुरक्षित रखने, व्यवस्थित रखन, उसे फैलाने और स्थायी बनाने में पर्याप्त है। सजन की अपेक्षा इसका महत्व कम नहीं है। मां की अपेक्षा धात्री की सेवा कम नहीं होती या इतनी कम नहीं होती किं असपर उपेक्षा की जाय।
यबाण मेरे तीर्थ के लिये सहायक तो है ही, साथ ही एक महाल जुगसत्य को प्राप्त करके आर जीवन में निःसंशय वृत्ति पैदा करके इसने अपना कल्याण भी किया है। इसप्रकार इनके जीवन की क्रान्ति स्वपर कल्याणमय होगई है। .
ये लोग इस अपापा नगरी के सोमिट ब्राह्मण के यहां