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- महावार का अन्तस्तल
अंगों में भी सप्तभंगी के बिना काम नहीं चल सकता । जैसे हिंसा पाप है । पर थोड़ी बहुत हिंसा तो होती ही रहती है वह अनिवार्य है उसे पाप नहीं कह सकते, इस प्रकार हिंसा के बारे में भी सप्तभंगी बनेगी।
१- हिंसा पाप है। (अस्ति) २- अनिवार्य आरम्भी हिंसा पाय नहीं है। [ नास्ति ]
३- वाहरी हिंसा (द्रव्य हिंसा) देखकर ही किसी को पापी या अपापी नहीं कह सकते । [अवक्तव्य ]
४- संकल्पी हिंसा पाप है, आरम्भी हिंसा पार नहीं। (अस्ति नास्ति)
५- भावहिंसा पाय है पर व्यहिंसा के विषय में निश्चित वात नहीं कह सकते । (अस्ति अवक्तव्य)
६- यद्यपि द्रव्यहिंसा के बारे में निश्चित कुछ नहीं कह - सकते फिर भी इतना निश्चित है कि अनिवार्य आरम्भी हिंसा पाप नहीं है । [ नास्ति अवक्तव्य]
-त्रसप्राणियों की संकल्पी हिंसा पाप है और स्थावरों . की अनिवार्य हिंसा पाप नहीं है इतना निश्चित होने पर भी . द्रव्य हिंसा होने से ही यह नहीं कह सकते कि यह हिंसा पाप है या अपाप । (अस्ति नास्ति अवक्तव्य )
कानसी हिंसा किसके लिये, किस जगह किस समय किस भाव से अनुकूल है और किसके लिये किस जगह किस लमय किस भाव से प्रतिकृल, इसका विचार करके ही सात भंगों में से चित भंग के द्वारा प्रश्न का ठीक अत्तर देना चाहिये । ज्ञान और चारित्र में ही नहीं किन्तु व्यवहार की हर बात में ये सात भंग लगाये जासकते हैं। प्रत्येक वस्तु के विचार में द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा विचार करना चाहिये । इसप्र. कार मेरे दर्शन का असाधारण दृष्टिकोण आज निश्चित होगया।