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महावीर का अन्तस्तल
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मैं-द्रव्य की न. अत्पत्ति होती है न नाश होता है झुल की पर्याय ही बदलती है। जैसे पानी से भाफ बनती है, भाफ से वादल वनते है, वादलों से फिर पानी बनता है । इसमें द्रव्य का नाश नहीं है पर्यायों का ही नाश है और पर्यायों की ही उत्पत्ति है, द्रव्य तो ध्रुव है।
आनन्द-क्या पर्याय वस्तु से भिन्न है ?
मैं-भिन्न नहीं है । वस्तु के अनित्य अंश को पर्याय कहते हैं और नित्य अंश को द्रव्य, इसप्रकार वस्तु द्रव्यपयाँयात्मक या नित्यानित्यात्मक है। वस्तु की एक पर्याय नष्ट होती है और उसी समय दूसरी पर्याय पैदा होती है और वस्तु द्रव्य रूप से ध्रुव बनी रहती है । इस प्रकार प्रत्येक वस्तु में उत्पाद व्यय और धाव्य ये तीन भंग प्रतिसमय रहते हैं । इस त्रिभंगी के द्वारा ही तुम पदार्थ का ठीक ज्ञान कर सकते हो।
आनन्द-पर्यायों की इस परम्परा का प्रारम्भ कब से हुआ. और अन्त कब होगा ?
मैं-पहिली पर्याय नष्ट हुए विना नई पर्याय पैदा नहीं होती,,नई पर्याय पैदा हुए विना पहिली पर्याय नष्ट नहीं होती, तब न तो पर्याय-परम्परा का प्रारम्भ बताया जासकता है न . उसका अन्त ।
आनन्द कुछ क्षण सोचता रहा, फिर बोला-वस्तु का आदि अन्त जाने.विना किसी वस्तु को पूरी तरह कैसे जाना जासकता है?
____ मैंने कहा-अंश से ही अंशी का पूरा ज्ञान होता है आनन्द ! पहाड़ की एक बाजू देखकर ही पूरे पहाड़ का ज्ञान माना जाता . है । तुम मेरी आकृति और मैं तुम्हारी आकृति एक ही ओर से देख.रहे हैं पर पूरे आनन्द के साथ पूरे वर्धमान की बातचीत हो रही है।