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________________ महावीर का अन्तस्तल [ १७९ MAA--- इस चातुर्मास में व्रतों के बार में काफी विचार किया। और मुख्य रतों की संख्या भी नियत कर दी । तय किया कि पांच रत मानना चाहिये । अहिंसा तो मुख्य है ही । सत्यवचन और अचौर्य भी आवश्यक है । साथ ही एक ब्रह्मचर्य व्रत भी अवश्य मानना चाहिये । यद्यपि ब्राह्मणों ने भी संन्यासी को ब्रह्मचर्य आवश्यक माना है पर उनका ब्रह्मचर्य साधना नहीं है, अत्यन्त वृद्धावस्था में होने के कारण उपयोगिताशून्य और यत्नशून्य है। . मैं ब्रह्मचर्य को लोकसाधना का अंग बनाना चाहता हूं। ब्रह्मचर्य केवल ब्रह्मचर्य के लिये ही न हो, किन्तु वह धर्मप्रचार का विशेष साधक हो । इसलिये मैं सिर्फ वृद्धों को ब्रह्मचारी नहीं बनाना चाहता हूं किन्तु उन तरुणों को भी ब्रह्मचारी वनाना चाहता हूं जो साम्प्रदायिक क्रांति और धर्म संस्थापना में जीवन दे सकते हैं । ब्रह्मचर्य के बिना यह कार्य कठिन है। क्योंकि सपत्नीक व्यक्ति धर्म प्रचार के लिये विहार नहीं कर सकता। साथ ही कुटुम्ब बढ़जाने से जीविका की समस्या भी विकट होजाती है। निःसन्देह वानप्रस्थावस्था में सपत्नीक रहकर भी मनुष्य कुछ काम कर सकता है पर उसमें भी अड़चनें हैं । आजकल सपत्नीक रहकर मनुष्य विहार नहीं कर सकता, दूसरे वानप्रस्थ अवस्था में क्रांति के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को झेलना कठिन होता है। . आजकल कुछ श्रमण सम्प्रदाय भी ऐसे हैं जो ब्रह्मचर्य को महत्व नहीं देते, वे चातुर्मास को ही मानते हैं पर इसका परिणाम यह हुआ है कि वे कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। मुझे तो एक क्रांति करना है उसके लिये ऐसे साधु सेवक चाहिये जो युवक हों, कर्मठ हो, और ब्रह्मचारी हों। इन सब बातों का
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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