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__ महावीर का अन्तस्तल
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इस घटना से खिन्न होकर मैने तुरंत मर्दन ग्राम भी . छोड़ दिया । सोचा कि इसकी अपेक्षा तो वन में ठहरना अच्छा। इसलिय में शालवन की तरफ चला । वन में पहुंचकर मैंने गोशाल से कहा-गोशाल, ऐसा नहीं ज्ञात होता कि तुम्हें मेरे निकट रहने से कुछ लाभ होगा। ___ गोशाल सिर नीचा करके चुप रहा ।
मैंने कहा-देखो गोशाल, किसी के ऊपर किसी भी तरह का झुपदेश लादने का मेरा स्वभाव नहीं है । मैं तो चाहता है कि मेरे निकट में रहने वाले मेरी प्रकृति तथा व्यवहार से ही कर्तव्य को समझकर स्वयं प्रेरित होकर कार्य करें ! कुंडक ग्राम में जो दुर्घटना हुई, मैं समझता था उससे तुम सभ्यता का पाठ सीख जाओगे पर तुम्हारे प्रतिक्रियावादी स्वभाव ने तुम्हे ज्ञानी. की अपेक्षा अज्ञानी ही अधिक वनाया। जब तुम इतनी सी बात स्वयं नहीं सीख सकते तब मैं तुम्हें कुछ भी नहीं सिखा सकंगा। तुम सोच नहीं पा रहे हो कि तुम्हारे इन असभ्यतापूर्ण कार्यों से मेरे मार्ग में कैसी बाधा उपस्थित होरही है, जिस क्रांति के लिये मैंने जीवन लगाया है उसके मार्ग में कैसे रोड़े अटक रहे हैं।
__गोशाल ने कहा-तो भगवन् आपने मुझे पहिले ही क्यों न रोक दिया, मैं ऐसा कार्य फिर न करता। .
मैंने कहा-क्या अब भी शब्दों से रोकने की जरूरत थी गोशाल, स्वयं प्रेरितता मनुष्यता का चिन्ह है और पर प्रेरितता पदाता का चिन्ह है । थोड़ी बहुत यह मनुप्यता और थोड़ी बहुत यह पशुता हर एक में रहती है, पर ऐसी दुर्घटना होने पर भी और इस प्रकार तुरंत ही गांव छोड़ देने पर भी अगर तुम कुछ न सीख सको तो यह पशुता का अतिरेक ही कहलायगा।
गोशाल-क्षमा करें भगवन् ! मैं समझता था कि आप