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MAMAVAAAN
महावीर का अन्तस्तल
[ १६३ सर्वत्र शब्दायमान होजाते हैं पर कुछ दिनों बाद वहां मुखे । पत्थर ही दृष्टि पड़ते हैं, अस्तु गोशाल की मुझे चिन्ता नहीं है। जब तक उसे मेरे साथ रहना हो, रहे । जब जाना हो जाये । इस चातुर्मास में तो सुसका कुछ उपयोग भी होगया । जब में यह जानना चाहता था किसी प्राणी पर शब्द का प्रभाव पड़ता है या नहीं तब उसकी परीक्षा के लिये चिल्लाने का काम गोशाल ही करता था।
वह भिक्षा में कभी कभी भोजन ले आता था असे कीड़ियों में विखेरकर भी उनकी परीक्षा के काम में मुझे सहायता करता था। इस तरह इस चातुर्मास में पर्याप्त प्राणिपरीक्षा की है । और मैंने संसार के सब प्राणियों को एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय इसप्रकार पांच भागों में विभक्त कर लिया है।
पर मेरा यह प्राणिविज्ञान प्राणिशास्त्र की दृष्टि से नहीं है किन्तु धर्मशास्त्र की दृष्टि से है । संसार को सुखी करना और यथासम्भव अधिक से अधिक अहिंसा का पालन करना मेरा ध्येय है। और यह ध्येय केवल ध्यान का ही विषय नहीं है किन्तु व्यवहार का भी विषय है । इसलिये यह देखना पड़ता है कि हिंसा में तम्तमता किस प्रकार है । यो-तो जीवमय संसार में स्वास लेने में भी जीव मरते हैं, कृषिमें, शाकभाजी खाने में भी जीव मरते हैं पर इस हिंसा में और पशु पक्षियों को या कीड़ों मकोड़ों को मार कर खाने की हिंसा में अन्तर है । इस अन्तर को दिखलाये विना अहिंसा को व्यावहारिक नहीं बनाया जासकता।
- इसीलिये मैने श्रेणीविभाग किया है । और जिस प्राणी में जितना अधिक चैतन्य है जितनी अधिक समझदारी है उसकी हत्या में उतना ही अधिक पाप है ऐसा निश्चय किया है। इस