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महावीर का अन्तस्तल
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तरई नकल करने लगे, गाली देना तो बहुत साधारण बात थी। । चार दिन में एकाध वार कहीं भिक्षा में संखा सुखा मिलता था, नहीं तो कोई भिक्षा भी न देता था। . ........"
. गोशाल इन बातों से बहुत घबराया । असो अनुरोध से मुये लाट देश से लौटना पड़ा। कहीं कहीं मेरे शांत व्यवहार से लोगों पर कुछ असर पड़ा होगा, फिर भी अभी यह भूमि श्रमणों के योग्य नहीं है । सम्भवतः लोकोत्तर महर्धिकता के बिना यहां कुछ कार्य नहीं हो सकता। - अस्तु; एक नई जनता.का अनुभव हुआ यही सन्तोय है ।
१६ धामा ९४३२ इ. सं.
आसमान में मेघ छाने लगे थे, बिजली चमकने लगी थी इसलिये लाट देश के बाहर ही कहीं चातुर्मास बिताने के लिये हम लोग लौट रहे थे। इधर से दो आदमी जो डकैत मालूम होते ये लाट देश में घुस रहे थे। इतने में अंतरीक्ष से दोनों पर बिजली गिरो और दोनों मर गये। उन दोनों के हाथ में खुली नंगी तल. वारें थी. सम्भवतः उसी के कारण अनपर विजली पड़ी। लोहे के ऊपर बिजली अधिकतर गिरती है। . . !: :.!
। गोशाल बोला-ये लोग भी श्रमण विरोधी थे और अपने को मारने आरहे थे इसलिये इन्द्र ने वज्र फेंककर दोनों को" समाप्त कर दिया।
में मन ही मन मुसकराया । ऐसे ऐसे घोर संकटो में इन्द्र की नींद खुलती नहीं, आज ही अचानक खुलगई। पर मैंने कहा कुछ नहीं। अच्छा हुमा बेचारे गोशाल के मन को सान्त्वना होगई।
१७ धनी ९४३६ इ. सं. महिलपुर में पांचयाँ चौमासा पूरा किया। यहां मी