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महावीर का अन्तस्तल
इतना ही नहीं, गोशाल सामाजिक अनीतियों को और अपने अपमानों को एक सरीखा समझता है । सामाजिक अन्यायों का विरोध कभी तीव्रता से किया भी जासकता है पर अपने अपमानों का विरोध सुतनी तीव्रता से नहीं किया संकता ! हम सन्मान के ठेकेदार नहीं हैं कि जहां जायँ वहां हमाग सन्मान हो ही । लोगों की इच्छा होगी सम्मान करेंगे, न होगी न करेंगे। हमें सन्मान वसूल करने के लिये बलात्कार क्यों करना चाहिये ?
मैं गोशाल को ये सब बातें समझाता नहीं हूं, क्योंकि बिना जिज्ञासा प्रगट हुए मैं किसी को समझाना भी पसन्द नहीं करता, पर गोशाल को अपनी उतावळी का और असंयम का परिणाम भोगना पड़ा हैं :
उस दिन ब्राह्मण ग्राम में ऐसा ही हुआ । इस गांव के दो संचालक हैं एक नंद दूसरा उपनंद, दोनों भाई हैं। आधा गांव नंद के हाथ में है आधा अपनंद के । नंद उपनंद की अपेक्षा कम - धनी है। गांव में घुसते ही गोशाल ने इन सब बातों का पता लगालिया । में तो नंद के यहां ही भिक्षा लेने चलागया और गोशाल इसलिये उपनंद के यहां गया कि अधिक धनी के यहां अधिक अच्छा भोजन मिलेगा पर हुआ उल्टा ही । उपनन्द ने एक दासी को आज्ञा देकर वासा भात दिलवादिया । वाला भात देखकर गोशाल बकझक करने लगा । उपतन् ने गुस्से से दासी से कहा- अगर यह न लेता हो तो इसी के सिर पर डाल दे 3 इसपर गोशाल ने इतनी गालियाँ दी कि स्वनन्द का जी जलने लगा और उसने भी गालियाँ दीं। और उसके घरवाले आकर भी गालियाँ देने लगे । इस तरह गोशाल ने सब घर में तो आग लगादी पर न तो सन्मान पाया न किसी का सुधार करपाया । साधुता का यह मार्ग नहीं है ।