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महावीर का अन्तम्तल :
१२५ ..... ___ गोशाल है तो भोला, पर जन्म के संस्काग ने इसकी मनोवृत्ति को शुद बना दिया है । यह धीरज नहीं रख सकता। जहां न मांगना चाहिये वहां भी मांग बैठता है और बढ़ी निर्ल
जता से मांग बैठता है । इसको दखकर मैं सोचता हूं कि मातां पिता के द्वारा मिले हुए संस्कागं का भी जीवन में एक विशेष महत्व है । ऐसा मालूम होता है पत्र भी जीवन की एक बड़ी विशेषता है । यही कारण है कि गोशाल कई माह मेरी संगति में रहा पर अपने नीचगोत्र का असर चह-दूर न कर सका ।
यद्यपि यह मैं नहीं मानता कि गोत्र वदल नहीं सकता । ज्ञान और संयम से जन्म के संस्कार भी बदल जाते हैं। नीचगोत्री मनुप्य में जो एक तरह की क्षुद्रता की भावना, आत्मगौरव. हीनता या नकली वाभिमान आदि नीच गोत्र के चिन्ह होते हैं वे दूर होसकते हैं और समय पाकर मनुप्य उच्चगोत्री बन
सकता है। में तो समझता हूं कि संयमी मनुण्य नीचगोत्री रह . . नहीं सकता, भले ही उसके माता पिता नीचगोत्री रहे हो ।
लेकिन में देखता हूं कि यह असाधारण परिस्थिति गोशाल कं, जीवन में नहीं दिखाई देरही है। जहां में जाता है वहां पीछे से यह भी भोजन करने पहुंच जाता है, मुझे यह लाओ, मुझे वह लाओ, कह कह कर परेशान कर देता है । फल यह हुआ है कि इसका आदर नहीं रहपाता है । जिस दिन में भोजन करने जाता है अस दिन तो असे अच्छा भोजन मिल जाता है पर जिस दिन
भोजन नहीं करता उस दिन यह मारामारा फिरता है और - आदर सन्मान खोता रहता है।
कभी कभी यह रूपया वगैरह भी मांग बैठता है पर इस तरह भिखारियों को कहीं रुपये मिलते हैं ? यह.. पहिले से ही अच्छे अच्छे भोजनों के नाम गिना गिनाकर भोजन मांगता है, लोग भी चिढ़कर खगव से खरार भोजन बताते हैं। इसप्रकार