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महावीर का अन्तस्तल
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.. तीसरा भाई बोला-मालूम होता है देवार्य की रक्षा के लिये कोई देव आगया है।
दूसरा-एक नहीं दो। एक तो वैरी देव से लड़ रहा है दूसरा नाव को जल्दी जल्दी आगे बढ़ा रहा है। देख नहीं रहे हो ? नौका किस तरह झुड़ी जारही है।
यह ठीक है कि मैं निश्चित था, पर किसी एग्मात्मा में ध्यान लगाने के कारण नहीं, केवलं समभाव के कारण ! ध्यान तो मेरा उन लोगों की खुसस्नुस फुसफुल में लगा था। प्राकृतिक घटनाओं को लोग किस तरह दिव्य रूप दे देते हैं यह जानकर मुझे बड़ा कुतूहल हुआ। मैं समझता हूं इस युग में उनके इस आधार को तोड़ा नहीं जासकता। ईश्वर के सिंहासन को कंदाचित खाली किया जासकता है पर इन देवताओं के जगत्
को नहीं मिटाया जासकता। नये.तीर्थ के निर्माण में मुझे इस . वात का ध्यान रखना होगा।
. . . . . . .३१.-गोशाल. ... . . ... . १४ धनी ६४३३ ३ स. . . .
राजगृह नगर में मैंने दूसगं चौमासा पूरा किया। रहने के लिये मैंने नालन्दा का भाग चुना था। वहां कपड़े वुनने : की एक विशाल शाखा थी, इसाके एक हिस्से में एक खाली स्थान में मैंने चौमासा विताया । कट-सहिष्णुता का अभ्यास . करना, और जगत् को. देने लायक सत्य की शोध करने के लिये चिन्तन करना ये ही दो मुख्य कार्य मेरे रहे । पारण के लिये मैं कभी विजय श्रेष्ठी के यहां कभी आनन्द श्रेष्ठी के यहां, कभी सुनंद के यहां चला जाता था। इन लोगों के यहां मुझे शुद्ध भोजन मिल जाता था, और मेरे निमित्त से इन्हें कुछ बनाना भी न पड़ता था। और ये लोग काफी आदर प्रेम से