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महावीर का अन्तस्तल
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होकर वे बोलीं-वे तो मुझे छोड़गये पर मैं तो उन्हें नहीं छोड़ सकती। मुझे उनकी बड़ी चिन्ता है । मैं उन्हें जानती हूँ | उनकी साधना के ध्येय का तो मुझे पता नहीं, पर वे कुछ ऐसे हठी हैं कि सामने मौत आजायगी तो भी किनारा काटने की कोशिश न करेंगे । इसलिये मैं चाहता हूं कि उन्हें विना जताये दूर दूर रहकर तुम सुनके आसपास रहो। और जव. कोई संकट आये तव सारी शक्ति लगाकर निवारण करो। और किसी तरह जब उनकी अनुमात मिल जाय तब सुनके पारिपार्श्वक बनने की चेटा कगे। तुम्हें जो आजकल वृति मिलती है अससे चौगुणी भृति मिलेगी। इतना ही नहीं, मेरे पास की जो सम्पत्ति तुम चाहोगे वह भी तुम्हें मिलेगी। .
मन हाथ जाड़कर कहा-आप की दया से मुझे किसी बातकी कमी नहीं है बहूरानी, चांगुनी भृति लेकर तो मैं क्या करूंगा, विता भात के भी अगर कुमार मेरी सवा लेना स्वीकार करेंगे तो मैं अपने को सौभाग्यशाली समझूगा । यह कहकर में आया । रास्ते में सोम काका मिलगये, सुनसे पता लगा कि आप इस तरफ आये हैं । म जब आया तव पहर भर रात बीत चुकी थी, रात तो अंधेरी थी पर तारों के प्रकाश में मैं आपको पहिचान सका। फिर उस नीम के झाड़ के नीचे रातभर रहा । बीच
वीच में सोता भी रहा; और आपकी आहट भी लेता रहा । अभी __ 'उस गमार की दुष्टता देखकर मुझे खुलकर पास आना पड़ा।
इन्द्रगोप की बातें सुनकर मैं चकित होगया। देवी को दिव्यता से हृदय श्रद्धा से भरगया पर यह भी सोचा कि देवी के इन प्रयत्नों से मेरी साधना में कितनी बाधा पड़ सकती है इसका देवी को पता नहीं हैं, अन्यथा वे एसा प्रयत्न कभी न करती । मैं कुछ ऐसे ही विचार कर रहा था कि इन्द्रगोप ने कहाकुमार अभी न जाने आपको कितने वर्ष कैसी तपस्या करना है