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महावीर का अन्तम्तल
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यह कहकर मैन एक एक आभूषण अतार कर फैंक दिया। पीछे वस्त्रों की बारी आई । एक देवदूप्य उत्तरीय छोइकर बाकी सब वस्त्र भी अलग कर दिये।
यह सब देखकर भाई नन्दिवर्धन की आखों में आंसू भागये और मैंकड़ों उत्तरीय अपनी अपनी आंखें पोछते हुए दिखाई देने लगे। मैंने कहा- आप लोग इसका शोक न करें । . अपरिग्रहता दुर्भाग्य नहीं, सौभाग्य है । किसी पशु पर लदा हुआ बोम उतर जाय तो यह झुल पशु का दुर्भाग्य होगा या सौभाग्य? इसलिये प्रसन्नता से अव आप लोग घर पधारे, मैं अपनी साधना.. के लिय विहार करने जाता हूं।
यह कहकर में चल दिया और फिर मुंह फेर कर उनकी तरफ देखा भी नहीं। काफी रास्ता चलने के बाद जब रास्ते के मुड़ने से मुझे मुड़ना पड़ा तंव मेरी नजर विदाई की जगह पर पड़ी। सब जनता ज्यो की त्यों खड़ी थी। सम्भवतः वह तब तक मझे देखते रहना चाहती थी जब तक मैं दिखता रहूं| इसमें सन्देह नहीं. स्नेह का आकर्षण सव आकर्षणों से तीन होता है। पर मैं आज उसपर विजय पासका, उसका बन्धन तोड़ सका। हां! यह बन्धन तोड़ने के लिये नहीं तोड़ा है पर विश्व के साथ नाता जोड़ने के लिये तोड़ा है।
१-अव मी गजकुमार ५ सत्येशा सन्ध्याकाल ९४३२ इतिहास संवत्
विदा देनेवाली जनता ओझल हो चुकी थी और मैं आगे बढ़ता हुआ चला जारहा था । इतने में पीछे से किसी की पुकार सुनाई दी 'वर्द्धमान कुमार ! ए वर्द्धमान कुमार..! मैं नहीं चाहता था कि ममताका कोई जाल अब मेरे ऊपर फिर आक्र. मण करे, इसलिये पुकार की पवाह न कर मैं आगे बढ़ता ही