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आंसू निकाले विदा किया करें, पर आज सरीखी विदाई देना भी अपने भाग्य में लिखा लाई है इसकी हमें कल्पना तक नहीं थी, इसलिये इस अवसर पर अगर हम अपने हृदयों को पत्थर न बना पायें तो हमें क्षमा करना !
महावीर का अन्तस्तल
मैंने कहा- भाभी, मैं इसलिये विदा ले रहा हूँ कि भविष्य में भी बहिन पुत्री पत्नी और भाभियों को अपने हृदय को पत्थर बनाने के अवसर ही न आयें। आशीर्वाद दो कि मैं अपनी साधना में सफल हो सकूँ !
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इसके बाद विदा दी देवी ने । अनके मुँह से कुछ कहा न गया । पहिले तो पास में खड़ी प्रियदर्शना को उनने मेरे. पैरों पर झुका दिया फिर स्वयं झुककर मेरे पैरों पर सिर रख कर फक्क पड़ी। उनके आंसुओं से मेरे पैर भींगने लगे। मैंने अन्हें उठाते हुए कहा- धीरज रक्खो देवी, मोतियों से भी अधिक सुन्दर और बहुमूल्य आंसुओं को इस तरह खर्च न करो । दुःख से जलते हुए संसार की आग बुझाने के लिये इन आंसुओं को सुरक्षित रखना है।
देवी ने गद्गद् स्वर में कहा चिन्ता न करो देव, नारियाँ धीरज में भले ही कंगाल हों पर आंसुओं में कंगाल नहीं होती; आंखों का पानी ही तो अनके जीवन की कहानी है ।
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मैं तो तुम भी आशीर्वाद दो देवी कि तुम्हारे आंसुओं मैं मैं संसार भर की नारियों की कहानी पढ़ सकूं 1
देवी बगल में खड़ी भाभी जी के कन्धे पर सिर रखकर - उनका कन्धा भिगाने लगी.
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क्षणभर मैं स्तब्ध रहा । फिर भाभी से वाला-अब, चलता हूँ भाभी, साहस बटोरने का काम तुम्हे सौंप जाता भांशा है उसका बड़ा हिस्सा तुम देवी को प्रादान करोगी।