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महावीर का तस्तल
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मैं-तब आप मुझसे क्या आशा करते हैं ?
वे-हम लोगों ने आपके बारे में बहुत सुना है । आप बहुत ज्ञानी हैं, तपस्वी हैं, संसार की इस दुर्दशा से चिंतित हैं। इसलिये आप एक नये तीर्थ की स्थापना कर सकत है । जब तक नया तीर्थ न बने, तीर्थ के आधार से विशाल संघ न बने तर तक साधारण जनता के मन पर अपने विचारों की कार न पड़ेगी, समाज का इस दुर्दशा से उद्धार नहीं होगा।
बीच में बोल झुठी देवीजी-पुगने तीर्थ कुछ कम नहीं है, तब एक नया तीर्थ वनाने से क्या लाभ ?
वे-घर में अगर बहुत से बुड्ढे बैठे हो नत्र क्या इलीले नये बालक की आवश्यकता नहीं रहती माई ?
देवी-बालक क्या वृद्ध न बनेगा ? ।
वे-बनेगा, पर वृन्ध बनने के पहिल जवाना भर काम कर जायगा, आगे के लिये नया वालक भी पैदा कर जायगा। जगत् की व्यवस्था तो इसी तरह चलती है माई । पुराने व्याक्त मरते हैं, नये पैदा होकर उनकी जगह लेते हैं, पुराने तीर्थ मरते हैं. उनकी जगह नया पैदा होता है, घम की परम्परा मानव की परम्परा की तरह इसी तरहं चलती है।
— कुछ क्षण सब चुप रह, फिर लौकान्तिक बोले-इसमें सन्देह नहीं माइ !कि कुमार के जान स आपके जीवन में शून्यता आजायगी। पर आज की दुर्दशा के कारण कितने घरों में शून्यता आरही है इसका पता अगर आपको एक बार भी लगजाय तो दिन रात आपक आंसु थमेंगे नहीं। पशुओं की दुर्दशा की बात जान दीजये, उसके लिये तो ब्राह्मणों का साफ कहना है कि 'यज्ञार्थ पशवः सृष्टाः' यज्ञ के लिय ही पशु बनाये गये हैं