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प्र १५४ म. स्वामी ने द्वितीय चातुर्मास कहाँ किया
था ?
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उ. राजगृही नगर के नालंदा पाड़ा में ।
प्र. १५५ म. स्वामी ने राजगृह में कहाँ स्थिरता की थी ? तंतुवायशाला में ।
उ.
प्र. १५६ म. स्वामी को तंतुवायशाला में किससे मुलाकात हुई थी ?
मखजातीय गोशाल नाम के युवा भिक्षुक से ।
उ.
प्र. १५७ गौशालक कैसा था ?
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उ.
गौशालक स्वभाव से उच्छृंखल, कुतूहल प्रिय और मुँहफट था, साथ ही रसलोलूपी और झगड़ालू भी था ।
प्र. १५८ म. स्वामी के साथ गौशालक ने कैसा व्यवहार किया था ?
उ. दुष्ट गौशालक निरंतर छह वर्ष तक प्रभु को अनेक प्रकार की पीड़ाएँ और कष्ट पहुँचाता रहा । गौशालक का संपर्क महावीर के जीवन में सदा त्रासमयी रहा । पर क्षमावीर महावीर ने
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सदा ही उसे क्षमा प्रदान की। अभय दान दिया और शरण दी ।