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________________ ( ८० ) प्र १५४ म. स्वामी ने द्वितीय चातुर्मास कहाँ किया था ? ► उ. राजगृही नगर के नालंदा पाड़ा में । प्र. १५५ म. स्वामी ने राजगृह में कहाँ स्थिरता की थी ? तंतुवायशाला में । उ. प्र. १५६ म. स्वामी को तंतुवायशाला में किससे मुलाकात हुई थी ? मखजातीय गोशाल नाम के युवा भिक्षुक से । उ. प्र. १५७ गौशालक कैसा था ? • उ. गौशालक स्वभाव से उच्छृंखल, कुतूहल प्रिय और मुँहफट था, साथ ही रसलोलूपी और झगड़ालू भी था । प्र. १५८ म. स्वामी के साथ गौशालक ने कैसा व्यवहार किया था ? उ. दुष्ट गौशालक निरंतर छह वर्ष तक प्रभु को अनेक प्रकार की पीड़ाएँ और कष्ट पहुँचाता रहा । गौशालक का संपर्क महावीर के जीवन में सदा त्रासमयी रहा । पर क्षमावीर महावीर ने • सदा ही उसे क्षमा प्रदान की। अभय दान दिया और शरण दी ।
SR No.010409
Book TitleMahavira Jivan Bodhini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishchandra Maharaj, Jigneshmuni
PublisherCalcutta Punjab Jain Sabha
Publication Year1985
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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