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( ३० ) उ. वर्धमान ने अवधिज्ञान से देखा कि यह क्या
है ? तव मालू महुआ कि यह तो हमें डराने के लिए आये हुए देव की देवमाया है । उन्होंने जरा भी घवराहट किये विना देव को वोध । देने के लिए वज्र जैसा कठोर मुक्के का प्रहार देव के कंधे पर किया। देव असह्य पीड़ा से
पीड़ित हो उठा । उसका संशय दूर हो गया। अ. ४३ ईर्ष्यालु देव का संशय दूर होने पर उसने क्या
किया ?
उ.
देवेन्द्र का कथन यथार्थ ज्ञात होने पर उसने मूल स्वरूप प्रगट किया। वाल वर्धमान के चरणों में झुक गया और क्षमा मांगी। उनकी प्रशंसा करते हुए कहा-"कुमार ! तुम महान् वलशाली हो, तुम्हारी निर्भीकता प्रशंसनीय है, मैं आया था तुम्हारे साहस की परीक्षा लेने
क वनकर और अव जा रहा हूँ प्रशंसक वनकर।"
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प्र. ४४ बाल वर्धमान का नाम महावीर क्यों रखा
गया?