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"गौतम ! भमणोपासक आनन्द का कथन सत्य है। तुमने उसके सत्य को असत्य कहा है-यह सत्य की बहुत बड़ी अवहेलना है । तुम शीघ्र आनन्द के पास वापस . जाओ! उससे क्षमा माँगो और अपने भ्रांत कथन के
लिए प्रायश्चित्त करो।" प्र. ६२४ म. स्वामी से सत्य कथन सुनकर इन्द्रभूति
गणधर ने क्या किया? सत्य के परम जिज्ञासु इन्द्रभूति उल्टे पांवों भानन्द के निकट आये । आनन्द ! मैंने तुम्हारे सत्य ज्ञान की अवहेलना की है मैं तुमसे क्षमा मांगता हूँ। तुम्हारा कथन सत्य है, मेरी
ही धारणा भ्रांत थी।" 'प्र. ६२५ म. स्वामी ने ३५वां चातुर्मास कहाँ किया था ? "उ. वैशाली नगर में। प्रे. ६२६ म. स्वामी चातुर्मास के बाद कहाँ पधारे थे ? उ. कौशल भूमि के साकेत नगर में। 'प्र. ६२७ म. स्वामी के पास मूल्यवान रत्न लेने कौन
आया था? उ. किरातराज ।