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क्यों नहीं सब कुछ एक साथ छोड़ देते। जब भोग से घृणा हो गई तो फिर त्याग का नाटक क्यों ? आओ, वज्र संकल्प के साथ
आगे बढ़ो ?" प्र. २५२ धन्यकुमार की बात सुनकर शालिभद्र ने क्या
किया? शालिभद्र (साला) और धन्य (बहनोई) दोनों घर से निकलकर चले आये सीधे भगवान महावीर के पास। प्रभु महावीर तब राजगृह के बाहर गुरगशील चैत्य में विराजमान थे। दोनों साले-बहनोई ने प्रभु से दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के बाद वे अध्ययन और
तपश्चरण में जुट गये। प्र. २५३ म स्वामी ने १६वें चातुर्मास के बाद किस
ओर विहार किया था ? . उ. चम्पापुरी की ओर। प्र. २५४ म चम्पापुरी में कहाँ विराजे थे ? ..... उ. पूर्णभद्र चैत्य में। .. प्र. २५५ म. स्वामी के पास चम्पापुरी में किसने श्रावक
पडिमा धारण की थी ?. . . . . , .