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होने के कारण महाराजा श्रेणिक भी नही खरीद सके । विदेशी व्यापारी निराश होकर जा रहे थे। संयोग से वे भद्रा सेठानीके महलों की तरफ आ गये । भद्रा सेठानी ने उन विदेशी व्यापारियों को मुँह मांगा मूल्य देकर रत्न कम्बल खरीद लिए । कम्बल सोलह ही थे, अतः उनके दो- दो टुकड़े करके बत्तीसों पुत्रवधु को दे दिये ।
महारानी चेलणा ने राजा श्रेणिक से एक रत्न कम्बल की मांग की । राजा ने व्यापारी को बुलाया तो पता चला कि सभी कम्बल भद्रा सेठानी ने खरीद लिए हैं। राजाने सेठानी के पास कहलाया कि "एक कम्बल हमें चाहिए, जो भी मूल्य हो वह लेकर कम्बल दे दें।" भद्राने विनयपूर्वक वापस सूचित किया कि वे रत्नकम्बल तो खण्डित हो गये हैं मेरी पुत्र वधुनों ने उनके पाद प्रोच्छन बना लिए है, अतः मैं क्षमा चाहती हूँ ।"
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राजा श्रेणिकको यह जानकर बहुत ही आश्चर्य हुआ कि नगर में उससे भी अधिक
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