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दिया। वे चिल-चिलाती धूप में बैठकर आतापना लेते, कड़कड़ाती सर्दी में वस्त्र उतार कर खड़े हो जाते। विकट तप और अनेक परिसहों को सहन करते हुए वे साधना के उत्कृष्ट पथ पर निरंतर बढ़ते चले गये । तपःसाधना के दिव्य प्रभाव से अनेक प्रकार को
चामत्कारिक शक्तियाँ भी उन्हें प्राप्त हो गई थीं। प्रे. २०३ नंदोषेण मुनि तपश्चर्या के पारणे पर किसके
यहाँ भिक्षार्थ गये थे? नंदीषण मुनि का छठु तपका पारणा था। भिक्षार्थ पर्यटन करते हुए नगर की एक प्रमुख गणिका के प्रासाद में पहुँच गये। द्वार में
प्रविष्ट होते ही मुनिने 'धर्मलाभ' कहा । प्र. २०४ नंदीषण मुनि को देखकर गरिएका ने क्या
कहा था ? नंदीषण मुनिको देखकर गणिका उपहास के स्वर में वोली-महाराज ! "हमें तो धर्मलाभ नहीं, अर्थलाभ चाहिए। धर्मलाभ करना हो
तो किसी बनिये के घर में जाइये। गरिएका . के घर में तो पहले अर्थलाभ दिया जाता है।"