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पाकर मेघकुमार की अन्तश्चेतना जागृत हो गई। भोगासक्ति से विरक्ति की ओर मुड़ गया उसका अन्तःकरण। देशना का क्रम समाप्त होते ही वह प्रभु के चरणों में
प्राकर भाव-विभोर मुद्रा में विनत हो गया। प्र. १७३ म. स्वामी के चरणों में आकर मेघकुमार
ने क्या कहा था ? "प्रभो ? आपने जीवन का चरम सत्य उद्घाटित कर दिया ! जन्म-जन्म से मेरी सोई आत्मा नाग उठी है, मैं आपके चरणों में दीक्षित होकर साधना के इस महापथ पर बढ़ना चाहता हूँ और पाना चाहता हूँ उस अक्षय अनंत आनंद को, जिस आनन्द को जिस आत्म वैभव को, काल का ऋ र प्रवाह
कभी लुप्त नहीं कर सकता।" ‘प्रे. १७४ म. स्वामी ने मेघकुमार से क्या कहा था ?
मेघकुमार की अंतर् जागृति में जो वेग था, उसकी भावना में जो तीव्रता थी, प्रभु महावीर ने उसका स्वागत किया-"देवानुप्रिय ! जिस मार्गका अनुसरण करने से तुम्हारी