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ज्ञ-कर्म के अंगोपांग एवं रहस्य के साथ, ऋग्वेद-यजुर्वेद सामवेद- श्रथर्ववेद - चारों वेदों में, पांचवे इतिहास और छट्ट े निघंटुमें निश्रणात थे। स्मारक (दूसरे को याद करानेवाले) वारक (अशुद्ध पाठको रोकनेवाले) और धारक (अर्थको जाननेवाले थे । वे छ: अंगो के जानकार, खष्टि
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तंत्र ( सांख्य शास्त्र ) में विशारद, गणित में, शिक्षण में, शिक्षा में, कल्प में, व्याकरण में, छंद में, निरुक्तमें, ज्योतिष में, ब्राह्मणों के अन्य शास्त्रों में एवं परिव्राजकों के आचार- शास्त्र में निपुण, सर्व प्रकार की बुद्धियों से संपन्न, यज्ञ कर्म में निपुण इन्द्रभूति ब्राह्मण थे ।
प्र. ३५ म. स्वामी प्रपापा नगरी पधारे तथा किसकी
रचना हुई थी ? समवसरण की ।
3.
प्र. ३६ समवसरण की रचना किसने की थी ?
देवोंने ।
उ.
प्र. ३७ समवसरण की रचना क्यों की थी ?
उ.
मिथ्यात्वको दूर करने और शासन प्रभावना के लिए ।