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उ. श्रमण महावीर के जीवन में आश्चर्य और
संयोग की बात यह है कि उपसर्गों का प्रथम चक्र एक अबोध, अज्ञान ग्वाले द्वारा चलाया गया, और कष्टों का महान् रूप भी एक ग्वाले द्वारा कानों में शूलें ठोंक कर प्रस्तुत
हुआ। प्र. ४२६ म. स्वामी ने छमस्थावस्था के चारित्रपर्याय
में कितने उपवास किये थे ? उ. ४१६६ उपवास । प्रे. ४३० म. स्वामी ने छदमस्थावस्था के चारित्रपर्याय
में कितने पारने किये थे ? उ. ३४६ पारने। प्रे. ४३१ म, स्वामी के देवकृत कितने अतिशय थे ? उ. १६ ( उन्नीस ) प्र. ४३२ म.स्वामी ने कौन से आसन में साधन की थी? उ. प्रायः खड़े-खड़े, कायोत्सर्ग आसन में । प्र. ४३३ म. स्वामी का दीक्षा के बाद प्रथम शिष्य कौन
हुप्रा था ? गौशालक।
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