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( १३७ ) मछलियों, कछुओं आदि जलचर प्राणियों को डाल देता और चौथे खाने में जो कुछ बचता वह स्वयं खाकर पारणा करता। इस प्रकार का घोर तप वारह वर्ष तक करता रहा । अन्त में एक मास का अनशन कर आयुष्य
पूर्णकर वह असुर कुमारों का इन्द्र चमरेन्द्र वना। प्र. ३१८ चमरेन्द्र सौधर्मेन्द्र के देव विमान में क्यों
गया था ?
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चमरेन्द्र ने अपने ज्ञान - बल से इधर-उधर देखा-ससार में मुझसे भी कोई अधिक बलशाली और ऋद्धिशालो है क्या? तभी ठीक उसे देव-विमानों के ऊपर सौधर्म-विमान में इन्द्रासन लगा दिखाई दिया। सौधर्मेन्द्र अपने भोग-विलास, आमोद-प्रमोद व ऐश्वयं में मस्त था। अपने सिर पर इस प्रकार सौधर्मेन्द्र को प्रानन्द-विलास करते हुए देखकर चमरेन्द्र का अहंकार क्रोध के रूप में भड़क उठा। उसने अन्य असुर कुमारों से पूछा-यह कौन पुण्यहीन, विवेकहीन, अहंकारी देव है, जो यों हमारे मस्तक पर निर्लज्जता पूर्वक बैठा