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सन्देश, महावीर श्री चित्र-शतक तथा प्रकाश्य मान सचिन भक्ताभर महाकाव्य (पृष्ठ लगभग ७५०) आदि ग्रन्थ इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं।
श्री जिनवाणी सरस्वती मदिर के इस धर्म-प्राण पुजारी में समर्पण का गहराभाव है। सर्विस मात्र ही आपकी आजीविका का एक मात्र साधन होने पर भी आप उन्मुक्त हृदय से अपने न्यायोपार्जित धन का सही सदुपयोग श्री जिनवाणी माता के प्रसार-प्रचार मे ही सदा-सर्वदा करते रहते है परन्तु इस साहित्यसेवा को आप आय का साधन नही बनाते। प्रस्तुत ग्रन्थ "महावीर श्री चित्र शतक" को समस्त जैन मन्दिरो शिक्षा सस्थाओ एव जैन पुस्तकालयो को विना मूल्य देने का उनका निर्णय दूसरो के लिए एक उदाहरण है। आपके बहिरग व्यक्तित्व मे जितना सादापन है, उतनी ही सरलता एव गभीरता आपके अतरग मे है। आत्मन्विता आपका विशिष्ट गुण है। खादी का सादा लिवास आपकी देशभक्ति को प्रकट करता है।
कमलकुमार जैन शास्त्री "कुमुद" सम्पादक महावीर श्री चित्र-शतक
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+rr गौरव प्राप्यते दानात् न तु वित्तस्य सचयात् । उच्चैरिस्थिति पयोदाना, पयोधीनामध स्थिति ।।
ऊँचा सदा उठा है, छोडने वाला। नीचे सदा गिरा है, जोडने वाला ॥ देखलो वादल गगन का वन गया साथी। पर समुन्दर सर जमी पर फोड़ने वाला ।। ++++++++++++ +
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