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अमृत वचनो के अर्थों ने, दैन्य- दाह-तम दूर किया । वेदो की हर मौन ऋचा को, वशीकरण सा मंत्र दिया || काल-भाल पर चमके ऐसे, तारा शुक्र वितान का ॥ का ॥
पुण्य दिवस हम मना रहे हैं, महावीर
भगवान
(४)
पाप और पाखण्ड की ज्वाला, नाच रही थी हर घर मे । घृणा द्वेष की दुर्मुही नागिन, जहर उगलती थी नर मे ॥ बीत गये दिन पक्ष मास के, वर्ष अनेको बीत चले । लालच - लिप्सा बनी कामिनी, दया धर्म घट रीत चले ॥ एक तिलस्मी चमत्कार का, नाटक हुआ विधान कां । पुण्य दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान
का ॥
(५)
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तव ही त्रिशला की आँखों मे, सोलह सपन श्रृगार हुआ । चैत्र शुक्ल की त्रयोदशी को महावीर अवतार हुआ || किन्नरियाँ गन्धर्व देव गण, हर्षित थे मन ही मन में । राजा श्री सिद्धार्थ जनकवर डूब गये सम्मोहन में ॥ मात-पिता की गोद भर गई, सुख पाया सन्तान का । पुण्य - दिवस हम मना रहे हैं, महावीर भगवान
का ॥
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