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________________ . २६ : जो आत्म-स्वरूप में सस्थित होते हुए भी सर्व व्यापी है सम्पूर्ण लोक व्यवहार-व्यापारो के वेत्ता होने पर भी परम अकिंचन है इच्छाओं का अस्तित्व न होने पर भी जिनके सर्वांग से दिव्य-ध्वनि खिरती है जाग्रत उपादन वाले भव्य जीवो को जिनकी ध्वनि जड होते हुए भी समर्थ निमित्त बनती है ऐसे समवशरण-साम्राज्य के एकच्छन निलप्त सम्राट अरहत प्रभ श्री महावीर स्वामी की मागलिग शरण मे अपना आत्म-सर्मपण करता हू परम-पुनीत पच्चीस वें शतक पर भाव-भीनी विनयाञ्जलि __ अर्पयिता : चौधरी आइल मिल्स स्टेशन रोड खुरई (जिला सागर) म प्र. (विशुद्ध खाने का तेल बनाने मे शासन से स्वर्ण पदक प्राप्त)
SR No.010408
Book TitleMahavira Chitra Shataka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalkumar Shastri, Fulchand
PublisherBhikamsen Ratanlal Jain
Publication Year
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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