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सती चन्दना द्वारा वीर श्रमण को
निरन्तराय आहार
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उस अभागिनी दासी ने जव महाश्रमण को पडगाहा था। पराधीनता ने स्वतन्त्रता की देवी को अवगाहा था । कोदो के दाने रवीर बने फिर निरन्तराय आहार हुआ। पचाश्चर्य चदना का यो सचमुच पतितोद्धार हुआ ।
(१२८)