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ग्रन्थ-प्रसंग
अनादि निधन सनातनता को काल की सीमा मे कभी भी नही बाधा जा सकता तथापि पुराण और इतिहासो ने सदैव ही किसी एक कल्पित बिन्दु पर स्थित होकर अपने को आदिम इकाई घोषित किया है । आकाश और पृथ्वी का जिस कल्पित रेखा पर सगम का प्रतिभास होता है उसे क्षितिज कहते हैं। पुराणो के आकाश और इतिहास की धरातल का सगम भी एक ऐसा ही कल्पित क्षितिज है जहां से सभ्यता अथवा मानव विकास की कहानी का प्रारभ किया जाता है। उदाहरण के लिए आदिमयुग पर हम विचार करें। आधुनिक इतिहास जिस आदिमयुग की चर्चा करता है उसे वह स्वयं नही जानता । पुराण उसे समझाते हैं कि वह आदिमयुग दूसरा नही बल्कि इस कल्प काल की कर्मभूमि का प्रारम्भिक युग है जिसके प्रणेता आदिनाथ अर्थात् राजा ऋषभदेव थे। वही से मानव सभ्यता के विकास की क्रमिक कहानी का प्रारम्भ होता है।
अन्तिम मनु (कुलकर) श्री नाभिराय जी के पुरुषार्थी पुत्र युवराज ऋषभदेव ने स्वय कर्मभूमि के प्रारम्भ मे मनुष्यों को असि, मसि, कृषि, शिल्प, विद्या और वाणिज्य की शिक्षा देकर उनका सतत विकास करने का परामर्श दिया । सव से पहिले मानव के द्वारा अपने विचार मौखिक ही व्यक्त किए गये, पर जव विचारो कोलिपिवद्ध करने की आवश्यकता पडी तव कुछ सकेत चिन्ह वनाए गए। सभी ने अपने क्षेत्रो मे अनेको प्रकार के सकेत चिन्ह निर्मित किये और उन्हे आधार मान कर विचारो के लिपिवद्ध करने की परम्परा प्रारम्भ की गई । यही कारण है