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कुतप द्वारा सौधर्म स्वर्ग में जटिल
ऋषि का जीव
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आयु पूर्ण कर उस तापस ने प्रथम स्वर्ग में जन्म लिया । स्वर्गिक वैभव जिन वदन मे ही निज कात व्यतीत किया ।। भोगों को वह भोग रहा था पर सचमुच वह मुक्त वना। इसीलिये तो दो सागर तक वह माया से युक्त बना ।।
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