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हठयोगी मारीचि ब्रह्म स्वर्ग में
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परिव्राजक निज तप प्रभाव से आयु पूर्ण कर स्वर्ग गया । ब्रह्मस्वर्ग मे दस सागर तक सब सुख भोगे पूर्णतया ।। मिथ्या तप के भी प्रताप से मिल जाते जब सुख स्वर्गीय । तो फिर सत्य तपस्या द्वारा क्यो न मिले फल अद्वितीय? ॥
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