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समवशरण के आगे आगे धर्म-चक्र जो चलता है । तीर्थकर के अतिशय पुण्यो की यह परम सफलता है ।। धर्म-चक्र से ही सचालित प्राणि मात्र का जीवन हो । ज्ञान चरित जीवन के आगे सम्यक् चक्र सुदर्शन हो ||
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