________________
जैन प्रतीक तथा वर्द्धमान कीर्ति स्तम्भ
Janit
परस्परोपग्रहो जीवानाम्
जय पच परम गुरु वर्द्धमानजय लोक शिखर पर विद्यमान रत्नन्नय परम अहिंसा के
उद्बोधक स्वस्तिक समाधान उपकार परस्पर करे जीव-
चौ गति से पाएं छुटकारा । युग युग यह अमर प्रतीक रहे
घर घर गूंजे जय का नारा ॥
02-0-0-4
2-0043-0
1
वर्द्धमान की अमर कीर्ति का स्मारक स्तम्भ यही । वीतराग-विज्ञान कला का, करता है प्रारम्भ यही ॥ अनेकात अपरिग्रह एव, परम अहिसा की जय हो । धर्मचक्र सा हो अशोक, ऐव मृगेन्द्र सा निर्भय हो || ( ४१ )