________________
१३८
भ० महावीर ने कर्मवाद के सिद्धान्त का प्ररूपण कर हर एक व्यक्ति को अपने पैरो पर खडे होने की शिक्षा दी और ईश्वरशाही के हथकडो से बचाकर कर्मठ एवं कर्त्तव्यनिष्ठ वनाया।
महावीरश्री का छटवॉ कदम (निःसंगवाद)
मनुष्य का स्वभाव ही सग्रहशील है-अधिक से अधिक जुटाना, सग्रह करना उसकी प्रधानवृत्ति है। लेकिन यही प्रवृत्ति विश्व कलह की जननी है। दूरदर्शी भ० महावीर स्वामी मानव स्वभाव की इस बडी कमजोरी से युवराजावस्था से ही परिचित थे, इसलिए उन्होने आर्थिक विषमता को मिटाने के लिए ही नि सगवाद अर्थात् अपरिग्रहवाद का धर्म में समावेश किया । यदि वे ऐसा न करते तो जनता इसे राजनैतिक चाल कह कर टाल देती ! नि सगवाद का स्पष्ट अर्थ है-जरूरत से अधिक नही जोडना! यह जरूर है कि सम्पत्ति मानव जीवन की सब से अधिक आवश्यक वस्तु है लेकिन श्वॉस लेने की तरह नही। यदि ससार की सारी सम्पत्ति एक जगह जुड जाय तो दुनियां में विप्लव मच जाय, कलह और क्रान्ति की उद्भ ति होने लग जाय | धन का सग्रह करना बुरा नही है, लेकिन उसको जमीन मे गाढ रखना या केवल अपने ही स्वार्थ के काम मे लाना बुरा है-बहुत अधिक बुरा है।
नि.सगवाद और साम्यवाद दोनो मे भेद है। नि सगवाद व्यक्ति से सम्बन्ध रखता है और साम्यवाद राज्यकोय सगठन से । नि सगवाद मे व्यक्ति की भावना काम करती है और साम्यवाद में राज्यकीय अनुशासन । नि.सगवाद का दारोमदार अहिंसा पर अवलम्बित है जव कि साम्यवाद हिंसा पर आश्रित है। नि.सगवाद का स्रोत हृदय है और साम्यवाद दिमाग के तूफानी